चकबन्दी का उद्देष्य तथा उत्तर प्रदेश के चकबन्दी अधिनियम 1953 के मुख्य तत्व :
चकबन्दी के सम्बन्धित विधि के उद्देश्य और कारण जो कि उपरोक्त प्रस्तर में उद्वधृत किये गये है, उसके अतिरिक्त चकबन्दी प्रक्रिया से जिन उद्देश्यों की प्राप्ति हुई है। इन्हे संक्षेप में निम्न प्रस्तरों से उल्लिखित किया जा रहा है।
- चूँकि चकबन्दी प्रक्रिया किसी ग्राम के पिछले बन्दोबस्त के आधार पर की जाती है, इसलिये चकबन्दी प्राधिकारी खेतवार पड़ताल के समय इस बात का आंकलन करते हेै कि पिछले बन्दोबस्त तथा वर्तमान चकबन्दी प्रक्रिया प्रारम्भ प्रक्रिया होने के समय की अवधि में किसी प्रकार के अवैधानिक आदेश तो नहीं पारित किये गये है। विशेष रूप से ग्रामसभा/स्थानिक प्राधिकारी या राज्य सरकार में निहित भूमि तथा उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 132 की भूमि के सम्बन्ध में जाँच की जाती है। यदि इस प्रकार के कोई अवैधानिक आदेश या इंद्राज चकबन्दी प्राधिकारियों के संज्ञान में आते है तो इन्हें दुरूस्त किया जाता है।
- अत्यधिक समय हो जाने के कारण किसी ग्राम के नष्ट हो चुके स्थायी सीमा चिन्हों को चकबन्दी प्रक्रिया के अन्तर्गत पुर्नस्थापित करते हुए तथा सीमा को यथा स्थान सुनिश्चित करना चकबन्दी प्राधिकारियों का दायित्व होता है।
- किसी ग्राम में चकबन्दी प्रक्रिया के दौरान प्रत्येक चक को चकरोड तथा नाली प्रदिष्ट की जाती है।
- चकबन्दी प्रक्रिया में ग्राम के चारों ओर परिपथ का निर्माण किया जाता है, जिससे कृषकगणों/ग्रामीण जनता का आवागमन सरल हो सके।
- सार्वजनिक प्रयोजन के लिये चकबन्दी प्रक्रिया में भूमि की व्यवस्था तथा उनका सीमांकन सुनिश्चित किया जाता है। यथा स्कूल, चिकित्सालय, सामुदायिक केन्द्र खेल का मैदान, पशु चिकित्सालय आदि।
- भविष्य के आबादी के प्रसार के लिये भूमि आवंटित की जाती है। यह भूमि सामान्य वर्ग के अतिरिक्त अनु0जाति/ अनु0जनजाति के उन व्यक्तियों के लिये होती है, जो भूमिहीन हों तथा जिनके पास आवास न हों।
- चकबन्दी प्रक्रिया में बचत की भूमि नवीन परती के रूप में प्राप्त होती है जोकि ग्राम की ग्राम सभा के द्वारा भूमिहीन व्यक्तियों को विधि अनुसार पट्टे के रूप में आवंटित की जाती है।
- राजस्व ग्राम की खतौनी, खसरा तथा शजरा(भूचित्र) का नवीनीकरण किया जाता है, जिससे कि लम्बे समय तक रख-रखाव किया जा सकें।
- भूमि से सम्बन्धित विवादों(स्वत्व, भूचित्र संशोधन, जातों का विभाजन, दाखिल खारिज अभिलेखों का शुद्धीकरण आदि) को लम्बी प्रक्रिया के बजाय संक्षिप्त कार्यवाही के द्वारा निस्तारित किया जाता है, क्योंकि चकबन्दी अधिनियम एक स्वतः परिपूर्ण विशेष अधिनियम है, जिसके अन्तर्गत चकबन्दी प्राधिकारियों को अधिकार भी प्रदान किये गए है।
- चकबन्दी अधिनियम की एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि यह कृषकों को विभिन्न स्तरों पर विधिक प्रक्रिया से सुरक्षा प्रदान करता है। ग्राम के चकबन्दी प्रक्रिया में आने के पश्चात अन्य न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र समाप्त कर दिया जाता है।
- अधिनियम यह व्यवस्था करता है कि ग्राम के कृषकों के द्वारा निर्वाचित चकबन्दी समिति का परामर्श चकबन्दी प्रक्रिया के प्रत्येक स्तर पर प्राप्त करना अनिवार्य होगा। इस प्रकार इस प्रक्रिया के सभी स्तर पर चकबन्दी समिति, ग्राम सभा तथा सामान्य कृषकगणों का परामर्श प्राप्त किया जाता है।
- यह राज्य सरकार के विवेक पर निर्भर करता है कि कोई ग्राम या उसका भाग चकबन्दी प्रक्रिया के अन्तर्गत प्रख्यापित किया जाये। इस सम्बन्ध में अधिनियम में एक मात्र प्रतिबन्ध है कि किसी ग्राम में धारा-52 के प्रकाशन के 20 वर्ष पश्चात ही उसे पुनः चकबन्दी हेतु प्रख्यापित किया जा सकता है। विशेष परिस्थितियों में यह अवधि 10 वर्ष की हो सकती है।
- यद्यपि अधिनियम तथा नियमावली में किसी ग्राम में चकबन्दी प्रक्रिया प्रारम्भ करने हेतु कोई पूर्व शर्त नहीं रखी गयी है सिवाय इसके जो कि पूर्व प्रस्तर में उल्लिखित है किन्तु प्रशासनिक निर्देषों के द्वारा कतिपय औपचारिकताएं आवश्यक हैं तथा ग्राम सभा के द्वारा चकबन्दी प्रारम्भ किये जाने हेतु किया गया प्रस्ताव, ग्राम के कुल क्षेत्रफल का 40 प्रतिशत कृषि योग्य होना, ग्राम की अधिकांश जनता का चकबन्दी के पक्ष में होना तथा अन्त में कलेक्टर/जिला उप संचालक चकबन्दी द्वारा पुनः चकबन्दी कराये जाने की संस्तुति।
- अधिनियम इस बात की भी व्यवस्था करता है कि यदि किसी ग्राम में चकबन्दी प्रक्रिया गतिमान है और किसी स्तर पर यह प्रतीत होता है कि ग्राम में चकबन्दी प्रक्रिया बन्द किया जाना आवश्यक है, तो अधिनियम की धारा 6(1) के अन्तर्गत चकबन्दी आयुक्त को अधिकार प्रदान किये गये है कि सम्बन्धित ग्राम में चकबन्दी प्रक्रिया समाप्त करने सम्बन्धी विज्ञाप्ति जारी करे। इस हेतु जोत चकबन्दी नियमावली के नियम-17 में कतिपय पूर्व शर्ते वर्णित है।
- यह अधिनियम, उन ग्रामों में जहां चकबंदी का कार्य पूर्ण हो चुका हो, चकबंदी से संबन्धित उन वादों को जिन्हें उठाया जाना चाहिए था परंतु नहीं उठाया गया, किसी सिविल कोर्ट में दायर करने पर प्रतिबंध लगाता है |
- यह अधिनियम चकबन्दी प्राधिकारियों को उनके द्वारा सदाशयता से इस अधिनियम के अन्तर्गत किये गये कार्यो के प्रति किसी वाद, अभियोजन अथवा अन्य विधिक कार्यवाही से संरक्षा प्रदान करता है।
- अधिनियम इस बात की भी व्यवस्था करता है कि किसी ग्राम में अधिनियम की धारा 52(1) के अन्तर्गत प्रकाशन के परिणाम स्वरूप् चकबन्दी प्रक्रिया समाप्त हो जाने के उपरान्त भी इस अधिनियम के अन्तर्गत पारित तथा लेख्य याचिकाओं में पारित आदेशों का क्रियान्वयन इसी अधिनियम के अन्तर्गत नियुक्त प्राधिकारियों के द्वारा किया जायेगा।
आगामी पंचवर्षीय कार्य योजना
मापदण्ड |
संख्या |
चकबन्दी योजना के अन्तर्गत अनुमानित ग्रामों की संख्या |
लम्बित ग्रामों की संख्या |
6106 |
(जो चकबन्दी प्रक्रिया में हैं) |
|
प्रथम चक्र में अवशेष ग्राम |
2894 |
(जो चकबन्दी प्रक्रिया में अब तक नहीं लिये गये।) |
|
द्वितीय चक्र के सम्भावित ग्राम |
3000 |
योग |
12000 |
उपलब्ध स्टाफ के आधार पर (वर्तमान स्थिति बनी रहने पर)
वर्ष |
वर्ष के आरम्भ में अवशेष अनुमानित ग्रामों की संख्या |
चकबन्दी प्रक्रिया में लिये जाने वाले ग्रामों की संख्या |
योग |
चकबन्दी प्रक्रिया में पूर्ण होने वालें ग्रामों की अनुमानित संख्या |
वर्ष के अन्त में अनुमानित शेष ग्रामों की संख्या |
2007-2008 |
6106 |
1094 |
7200 |
1200 |
6000 |
2008-2009 |
6000 |
1200 |
7200 |
1200 |
6000 |
2009-2010 |
6000 |
1200 |
7200 |
1200 |
6000 |
2010-2011 |
6000 |
1200 |
7200 |
1200 |
6000 |
2011-2012 |
6000 |
1200 |
7200 |
1200 |
6000 |